Deepika Padukone Film: हाल में दीपिका पादुकोण, सिद्धांत चतुर्वेदी और अनन्या पांडे की फिल्म ‘गहराईयां’ अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई है। ट्रेलर रिलीज होने के बाद से दर्शक इस फिल्म को एक रोमाटिंक लव ट्राएंगल स्टोरी समझे रहे थे। दर्शकों ने मान लिया था कि यह फिल्म बेवफाई, टूटे संबंध और दिल टूटने की कहानी है, जो कुछ हद तक हकीकत भी है। लेकिन फिल्म देखने के बाद अब दर्शकों को यह महसूस हुआ कि यह बहुत गंभीर सामाजिक मामले पर बात करती है। यह मामला हमारे आधुनिक समाज में बहुत प्रासंगिक है।
‘गहराईयां’ में दीपिका और सिद्धांत के बीच रोमांटिक सीन की भी बहुत ज्यादा चर्चा रही। इसलिए फिल्म को रोमांस के एंगल से अधिक देखा जा रहा था। लेकिन व्यभिचार और जटिल संबधों के अलावा, डायरेक्टर शकुन बत्रा ने इस फिल्म में ‘चाइल्डहुड ट्रॉमा’ जैसे मामले को बड़ी खूबसूरती से पेश किया है। बचपन से जुड़ी कोई बुरी घटना कैसे किसी के वयस्क जीवन को प्रभावित करती है और इसे स्वीकार करने और आगे बढ़ने की आवश्यकता क्यों है? फिल्म इस मामले पर धीरे-धीरे पात्रों के साथ मजबूती से आगे बढ़ती है।
‘गहराईयां’ चाइल्डहुड ट्रॉमा को कैसे दर्शाती हैं?
फिल्म लीड भूमिका अलीशा खन्ना (दीपिका पादुकोण) के भूमिका के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसने अपनी मां को कम आयु में ही खो दिया था। उसकी मां ने सुसाइड की थी। एक लंबे समय तक अलीशा इस घटना के लिए अपने पिता विनोद (नसीरुद्दीन शाह) को दोषी ठहराती है। हालांकि आखिर में सच्चाई कुछ और निकलती है।
कहानी इस बात पर आधारित है कि बचपन में मां को खो देने और पिता के साथ गड़बड़ रिश्तों ने उसकी जीवन एक बंद कोठरी जैसी बना दी, जिसमें वह लगातर घुटन महसूस कर रही है। इन सब घटनाओं ने उसे कभी आगे बढ़ने नहीं दिया। न केवल वह इससे उबरने के लिए संघर्ष कर रही है, बल्कि वह बहुत अधिक तनाव से भी जूझ रही है।
इस वजह से अलीशा का भूमिका फिल्म में एंजायटी की गोलियों पर निर्भर दर्शाया गया है। अपनी बाकी जीवन में स्वयं से जुड़े लोगों को खो देने के डर और इनसिक्योरिटी के कारण दीपिका का कैरेक्टर अलीशा हमेशा अटक जाता है। अपने अतीत से आगे बढ़ने में असमर्थ, वर्तमान से उबरने के लिए वह हमेशा मानसिक तौर पर संघर्ष करती दिखती है। अपनी इसी जद्दोजहद के कारण जीवन से वह थोड़ी नाखुश है।
घरेलू हिंसा से बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य होता है प्रभावित
लेकिन फिल्म में चाइल्डहुड ट्रॉमा से जूझने वाला भूमिका केवल ‘अलीशा’ नहीं है। सिद्धांत चतुर्वेदी के कैरेक्टर ‘जैन’ के पास अपने अलग भयावह अनुभव हैं। वह घरेलू हिंसा के साक्षी होने की कहानी बयां करता है। जब उसकी मां घरेलू हिंसा की पीड़ित थी, हालांकि वह उस अपमानजनक संबंध में रहने का निर्णय स्वयं करती है। यही बात जैन को खटकती रहती है। एक वयस्क के रूप में जैन की जीवन भी इस घटना से प्रभावित रहती है।
घर में हाथापाई और गाली-गलौच का माहौल उसके पालन-पोषण पर भी प्रभाव डालता है। गरीबी से त्रस्त और दुर्व्यवहार ने उसे अंधेरे से बाहर निकलने के लिए प्रेरित किया। जैन का भूमिका बताता है कि उसने अपने बुरे समय और डर को अपनी ताकत बनाया और इसके बदले में उसे और अधिक हासिल करने, अधिक से अधिक खुशहाल जीवन जीने के लिए प्रेरित किया।
‘चाइल्डहुड ट्रॉमा पर बात’ करने की आवश्यकता क्यों है?
इस फिल्म का पहला भाग बेवफाई, रोमांस और लव ट्राएंगल में गुजरता है, इसमें दिखाया गया है कि कैसे जैन और अलीशा जब मिलते हैं तो अपने भयावह अतीत को लगभग भूल जाते हैं। लेकिन अंत में यह एक खतरनाक मोड़ लेती है, जिससे दर्शक पूरी सेटिंग से असहज हो जाते हैं। यह तब होता है जब पात्रों के लिए आपस में बात करना महत्वपूर्ण हो जाता है। अपने प्यार को खोने के बाद, टिया (अनन्या पांडे) अपने पिता और अलीशा की मां के बारे में कई खुलासे कर बैठती है।
वह बताती है कि कैसे उनके बीच ज्यादा मैरिटल अफेयर था। तब अलीशा यह सच्चाई पचा नहीं पाती। उसे आकस्मित सब कुछ समझ में आने लगता है। अलीशा के पिता ने उसकी मां को छोड़ने का निर्णय क्यों किया, उसके पिता ने अपने भाई से संबंध समाप्त क्यों कर लिये, अलीशा की मां दुखी क्यों थी और उन्होंने सुसाइड क्यों किया? इतने वर्षों तक उसने अपनी मां की मृत्यु के लिए अपने पिता को उत्तरदायी ठहराया था जबकि सच में वह स्वयं इस सबका उतना ही शिकार हुआ था।
चर्चा में रहा बाप-बेटी का इमोशनल सीन
फिल्म में बाप और बेटी के बीच इमोशनल वार्ता का एक सीन बहुत ज्यादा दिलचस्प है। विनोद और अलीशा बात करते हैं तो विनोद अपनी पत्नी, अलीशा की मां और उसके जीवन में की गई गलतियों के बारे में बताता है। पिता के रूप में विनोद बेटी को समझाता, “कैसे उसकी मां और अलीशा स्वयं अपनी किसी गलती से बढ़कर एक इंसान के रूप में कहीं अधिक अहम हैं। ”
विनोद कहता है, “उसकी जिंदगी, उस एक गलती से बड़ी थी, और तुम्हारी भी है। उसके लिए और भी बहुत कुछ था। ” फिल्म में नसीरुद्दीन का यह डायलॉग जीवन में गलतियां करने और उनसे आगे बढ़ने के लिए बहुत ज्यादा कुछ कह देता है।
पिता से जब अलीशा पूछती है, “क्या मेरी पसंद भी अर्थ रखती है, पापा?” वह उत्तर देता है, “ये जानने का तो केवल एक ही उपाय है कि तुम स्वयं को एक मौका दो। ” फिल्म के इस सीन ने जीवन में किसी बुरे दौर में उलझे रहने वाले लोगों को बहुत बढ़िया मैसेज दिया है।