Success Sutra : जीवन जीने के लिए मनुष्य को पुस्तक का ज्ञान या भिन्न-भिन्न विषयों की एजुकेशन जितनी आवश्यक है। उतनी ही व्यावहारिक एजुकेशन का ज्ञान होना भी महत्वपूर्ण है। किताबी ज्ञान बिना व्यावहारिकता जहर के समान होती है और किसी भी संबंध में आदमी कितना भी ज्ञानी क्यों न हो परंतु उसके भीतर यदि व्यवहारिक अभिव्यक्ति का समावेश नहीं है, तो उस मनुष्य का ज्ञान बेकार है। व्यावहारिक और सामाजिक जीवन में देखने में भी आता है कि कभी-कभी विषयपरक ज्ञान पर अनुभव का ज्ञान भारी पड़ जाता है।
वास्तव में अनुभवपरक ज्ञान बुद्धि की प्रखरता का प्रमाण होता है। ऐसे नियम जो शास्त्रों में लिखे गए हैं उन्हें नीतिशास्त्र कहते हैं। बिना नीति के चतुराई का जन्म नहीं हो सकता और चतुराई, बुद्धि की प्रखरता का स्पष्ट प्रमाण है। नीतियों का इस्तेमाल सदा हितकारी ही रहता है। नीति इस्तेमाल को दैनिक जीवन में कुछ इस तरह अपना सकते हैं और जीवन में एक अच्छा परिवर्तन लाने में सक्षम हो सकते हैं। आइए बात करते हैं कुछ नीति सूत्रों की। जिन्हें जीवन में यदि सम्मिलित कर लिया जाए तो जीवन जीने की कला में एक नया विस्तार देखा जा सकता है। जो हमारे जीवन में सफलता की सीढ़ी को चढ़ने में भी अत्यधिक सहायक होती हैं।
सदैव सज्जनों की ही संगत
सफलता की पहली सीढ़ी- अच्छे लोगों के साथ रहने से धीरे-धीरे हमारी विचारधारा भी उन्हीं के जैसी होने लग जाती है और यही उन्नति का एवं प्रतिष्ठा का प्रथम सूत्र होता है। अच्छी संगत ही पापाचारी को सदाचारी बनाने की सर्वोपरि औषधि है तथा बुरी संगत ही सदाचारी को पापाचारी बनाने में समर्थ है ।
सफलता की दूसरी सीढ़ी- असत्य कहना महापाप है। क्योंकि एक असत्य बनाए रखने के लिए सौ बार असत्य कहना ही पड़ता है परंतु यदि कभी एक असत्य से सौ लोगों का भला या जीवन रक्षा होती हो तो असत्य बोलने की आदेश है लेकिन इस एक असत्य के प्रायश्चित के लिए कम से कम 108 बार ईश्वर का नाम लेना चाहिए ।
जैसे को तैसा समझें
सफलता की तीसरी सीढ़ी- दुश्मन के साथी के साथ प्रेम नहीं करें और मित्र का विरोध न करें। एक मशहूर कहावत है कि नया मित्र और पुराना शत्रु विश्वास करने योग्य नहीं होता। पुराना मित्र चाहे कितना ही दूर हो या मिलन हुए सालों बीत गए हों तो भी उस पर विश्वास किया जाता है। मित्र कड़वा कहे तो भी उसी की सलाह लेनी चाहिए जबकि प्रिय और हितकारी बोलने वाले नए मित्र की सलाह मानना खतरनाक हो सकता है।
लोगों का जुड़ाव का मुख्य कारण है स्वार्थ
सफलता की चौथी सीढ़ी- परस्पर स्वार्थ के कारण ही संबंध बने हुए हैं। यह सत्य ही है कि पक्षी फलरहित वृक्ष को छोड़ देते हैं। सारस पक्षी जल रहित सरोवर को छोड़कर अन्यत्र चले जाते हैं। मंत्रीगण, भ्रष्ट राजा को छोड़ देते हैं। भौरे बासी पुष्प को छोड़कर नवविकसित पुष्प पर चले जाते हैं। मृग अग्नि से जले हुए वन को छोड़कर अन्यत्र चले जाते हैं , इसी प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि सभी प्राणी स्वार्थवश ही एक-दूसरे से प्रेम करते हैं ।