Aarti :घर हो या फिर धार्मिक अनुष्ठान। यदि पूजा की बात की जाए सबसे पहले आरती ही मन में आती है जिसको लेकर मन में एक दीपक सा जल उठता है। कोई भी पूजा बिना आरती के पूरी नहीं मानी जाती। पूजन को समाप्ति करने के लिए आरती पूजन विधि का आखिरी चरण होता है। आरती करने से पूजा स्थल में और उसके इर्द-गिर्द के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा भर उठती है। यही समय होता है जब भगवान को प्रसन्न करने के लिए पूजा करने वाला साधक यदि मनोयोग से आरती वंदना करें, तो उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण करने में भगवान देरी नहीं करते। आरती का अर्थ है देवता को आर्त्ताभाव तथा मन से पुकारना। आरती देवता की कृपा पाने के लिए की जाती है। कहते हैं इस समय जो भी आप मन में रखकर आरती करते हैं वह आपकी इच्छा अवश्य पूरी होती है। आरती करने का ही नहीं, बल्कि आरती देखने का बड़ा पुण्य मिलता है। ऐसे शास्त्रों में वर्णित हैं लेकिन आरती मनोयोग से करें तभी आपकी पुकार ईष्ट तक पहुंचती हैं। आज हम आपको विस्तृत रूप से बताएंगे कि भगवान को प्रसन्न करने के लिए आरती का किस प्रकार और कैसे किया जाना उत्तम फलदायी होता है।
क्या है आरती करने का फार्मूला?
- पूजन में हुई गलती या किसी प्रकार की कमियों को पूर्ण करने के लिए आरती पूजा करने के बाद आरती का विशेष महत्व है। घर हो या मंदिर भगवान की आरती दिन में दो बार प्रातःकाल और संध्याकाल में करना अति शुभ होता है।
- आरती में पहले मूल मंत्र द्वारा तीन बार पुष्पांजलि देनी चाहिए और ढोल नगाड़े आदि महावाद्यों द्वारा तथा रुई की बत्ती या कपूर से विषम संख्या की बत्तियां जलाकर आरती करनी चाहिए।
- आरती से पूर्व तथा पूजा के शुरुआत में शंख बजाने का भी विधान है। मान्यता है कि पूजन से पूर्व शंख बजाने से वातावरण में मौजूद निगेटिव ऊर्जा नष्ट हो जाती है। तथा वातावरण की शुद्धि होती है। इसलिए पूजा करने के बाद आरती से पूजा का समाप्ति करना चाहिए। तभी पूजा पूर्ण मानी जाती है।
- आरती परिवार के साथ मन में भगवान का ध्यान करते हुए और गाकर करना अच्छा होता है।
- आरती करने के बाद पूरे घर में भी दिखाना चाहिए। इससे पूजा स्थल के साथ- साथ पूरे घर मेंं भी सकारात्मक ऊर्जा की वृद्धि होती है।
आखिर में अग्नि के चारो और जल को घुमा कर, फिर भगवान को अर्पित कर, उसकी ऊर्जा को स्वयं भी अपने हाथों द्वारा सिर में रखना चाहिए। ऐसा करने से घर वालों तथा आरती करने वालों का मन शांत रहता है और भगवान प्रसन्न होते हैं।
आरती के ढंग –
आरती के पांच अंक के होते हैं।
1- दीपमाला द्वारा
2- जलयुक्त शंख से
3- धुले हुए कपड़ा से
4-आम और पीपल आदि के पत्तों से
5-साष्टांग अर्थात शरीर के पांचों भाग (मस्तक, दोनों हाथ और पांव) से आरती की जाती है।