जर्मन लोग वजन कम करने के लिए अक्सर उपवास करते हैं. वे इसे कई कारणों से करते हैं, जिसमें बेहतर पाचन भी शामिल है. उपवास को अतीत में विभिन्न प्रकार की पुरानी सूजन स्थितियों में सुधार करने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करने के लिए दिखाया गया है, लेकिन इस बारे में बहुत कम जानकारी है कि प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाएं स्वस्थ चयापचय को कैसे प्रभावित कर सकती हैं. हाल के एक शोध ने इस विषय पर कुछ अंतर्दृष्टि दी है.
क्योंकि जिगर एक जरूरी केन्द्र और चयापचय के नियामक के रूप में काम करता है, शोधकर्ताओं के एक समूह ने यह जानने के लिए निर्धारित किया कि उपवास के दौरान यकृत कोशिकाएं और प्रतिरक्षा कोशिकाएं एक दूसरे के साथ कैसे संवाद करती हैं. उनके निष्कर्ष ‘सेल मेटाबॉलिज्म’ पत्रिका में रिपोर्ट किए गए थे.
हेल्महोल्ट्ज़ म्यूनिख, उल्म विश्वविद्यालय, टीयूएम (म्यूनिख का तकनीकी विश्वविद्यालय), डीजेडडी (जर्मन मधुमेह अनुसंधान केंद्र), हीडलबर्ग यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल और दक्षिणी डेनमार्क यूनिवर्सिटी ने अध्ययन में योगदान किया.
शोधकर्ताओं ने जाँच की कि क्या यकृत कोशिकाओं और प्रतिरक्षा कोशिकाओं के डीएनए के वर्ग सक्रिय थे, साथ ही परिणामस्वरूप कौन से दूत अणु उत्पन्न हुए थे. उनके निष्कर्षों से पता चला कि ये कोशिकाएं ग्लूकोकार्टिकोइड रिसेप्टर नामक प्रोटीन के महत्व को उजागर करते हुए एक दूसरे के साथ वार्ता कर रही थीं, जो हमारे शरीर में व्यावहारिक रूप से हर कोशिका में पाया जाता है.