7 फरवरी, सोमवार को नर्मदा जयंती मनाई जाने वाली है लेकिन उससे पहले हम आपको बताने जा रहे हैं माँ नर्मदा की वो कथा जो आप सभी को जरूर पढ़नी और जाननी चाहिए.
पौराणिक कथा- इस कथा में नर्मदा को रेवा नदी और शोणभद्र को सोनभद्र के नाम से जाना गया है. नद यानी नदी का पुरुष रूप. (ब्रह्मपुत्र भी नदी नहीं ‘नद’ ही बोला जाता है.) यह कथा बताती है कि राजकुमारी नर्मदा राजा मेखल की पुत्री थी. राजा मेखल ने अपनी अत्यंत रूपसी पुत्री के लिए यह तय किया कि जो राजकुमार गुलबकावली के दुर्लभ पुष्प उनकी पुत्री के लिए लाएगा वे अपनी पुत्री का शादी उसी के साथ समापन करेंगे. राजकुमार सोनभद्र गुलबकावली के फूल ले आए अत: उनसे राजकुमारी नर्मदा का शादी तय हुआ. नर्मदा अब तक सोनभद्र के दर्शन ना कर सकी थी लेकिन उसके रूप, यौवन और पराक्रम की कथाएं सुनकर मन ही मन वह भी उसे चाहने लगी.
विवाह होने में कुछ दिन शेष थे लेकिन नर्मदा से रहा ना गया उसने अपनी दासी जुहिला के हाथों प्रेम संदेश भेजने की सोची. जुहिला को सुझी ठिठोली. उसने राजकुमारी से उसके वस्त्राभूषण मांगे और चल पड़ी राजकुमार से मिलने. सोनभद्र के पास पहुंची तो राजकुमार सोनभद्र उसे ही नर्मदा समझने की भूल कर बैठा. जुहिला की नियत में भी खोट आ गया. राजकुमार के प्रणय-निवेदन को वह ठुकरा ना सकी. इधर नर्मदा का सब्र का बांध टूटने लगा. दासी जुहिला के आने में देरी हुई तो वह स्वयं चल पड़ी सोनभद्र से मिलने. वहां पहुंचने पर सोनभद्र और जुहिला को साथ देखकर वह अपमान की भीषण आग में जल उठीं. तुरंत वहां से उल्टी दिशा में चल पड़ी फिर कभी ना लौटने के लिए. सोनभद्र अपनी गलती पर पछताता रहा लेकिन स्वाभिमान और विद्रोह की प्रतीक बनी नर्मदा पलट कर नहीं आई.